Wednesday 26 September 2018

परिंदे का घोंसला


परिंदे का घोंसला

उड़ गया था वो परिंदा घोंसले से
कर बैठा आसमान से मोहब्बत
लौटा था थककर घोंसले में फिर से
लेकिन वो अब पहले जैसा न था
याद आती थी उसे अब भी
वो आसमान की ऊंचाई
वो उनमुक्त उड़ान
कैदखाना लगता था अब घोंसला
भूल गया था उडऩे से पहले
थकने के बाद
यही घोंसला आराम देता है
उम्र बीती तो परिंदे ने जाना
घोसला कैद नहीं
जन्नत है जमीं पर..
इंसानी फितरत भी कुछ ऐसी ही है
उड़ो रंजन, मगर याद रहे
घोंसले बिना जीवन नहीं..
©राजेश रंजन सिंह