Tuesday 22 January 2019

मेडिकल कॉलेज में दाखिले का सपना पूरा करेगा NTA NEET



5 मई 2019 को पूरे भारत में होगी
66,000 मेडिकल सीटों के लिए होगी नीट परीक्षा


नई दिल्ली, (पंजाब केसरी): किसी भी युवा का सपना होता है डॉक्टर बनना। इस साल इस सपने को साकार करने के लिए परीक्षा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानि एनटीए परीक्षा लेगी। नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (नीट) 2019 का आयोजन एनटीए करेगी। यह पहली बार होगा जब यह परीक्षा एनटीए आयोजित करने जा रही है। इससे पहले यह जिम्मेदारी सीबीएसई पर थी। एनटीए नीट 2019 इस साल 5 मई को होना है। इसे लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 66,000 मेडिकल सीटों के लिए लाखों छात्र परीक्षा देंगे। सफल छात्रों को सिंगल विंडो काउंसलिंग प्रक्रिया के जरिये एमबीबीएस सीट आवंटित की जाएगी।
यह प्रतियोगी परीक्षा ऑब्जेक्टिव-टाइप प्रश्न-उत्तरों वाली होगी जिसमें गलत उत्तरों के लिए नेगेटिव मार्किंग होगी। बता दें कि नीट से पहले आल इंडिया प्री-मेडिकल एग्जाम हुआ करता था, लेकिन मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने का यह एकमात्र तरीका नहीं था। अनेक राज्यों में एमबीबीएस सीट आवंटित करने की अपनी व्यवस्था थी। 2012 में सीबीएससी व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने देशभर में इस सिंगल टेस्ट को प्रस्तावित किया। लेकिन पहला टेस्ट 2013 में ही आयोजित किया जा सका। इस बीच आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु आदि राज्यों ने सिंगल टेस्ट थोपे जाने का विरोध यह कहते हुए किया कि राज्यों व केंद्र के पाठ्यक्रमों में काफी अंतर है। दोनों राज्यों व निजी मेडिकल कॉलेजों के कोर्ट जाने के बाद जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नीट को रद्द करते हुए आदेश दिया कि मेडिकल काउंसिल ऑफ  इंडिया को संयुक्त टेस्ट आयोजित नहीं करना चाहिए। साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने नीट की वैधता को पुन: स्थापित किया। पहला टेस्ट मई 2016 में आयोजित हुआ।


नेट परीक्षा की तरह ही होगी निगरानी
नीट परीक्षा में नकल रोकने के लिए परीक्षा केंद्रों पर कड़ी निगरानी होगी। छात्रों के परीक्षा केंद्रों के भीतर जाने से पहले गहन जांच होगी। बता दें कि 18 दिसंबर से 23 के बीच आयोजित एनटीए नेट परीक्षा के दौरान भी कड़ी निगरानी की व्यवस्था की गई थी। नेट की ही तरह नीट परीक्षा के दौरान भी सभी एंट्रेंस परीक्षाओं में सीसीटीवी कैमरों से निगरानी रखी जाएगी।

31 जनवरी तक फॉर्म में करें करेक्शन
नीट 2019 के लिए भरे गए फॉर्म में किसी भी प्रकार के करेक्शन के लिए 14 जनवरी से एनटीए की वेबसाइट पर लिंक दिया जाएगा। छात्र 31 जनवरी तक करेक्शन कर सकेंगे। एनटीए ने साफ तौर पर स्पष्ट किया है कि इस 31 जनवरी के बाद करेक्शन करने के लिए अतिरिक्त समय नहीं मिलेगा। जबकि 15 अप्रैल से छात्र एनटीए की वेबसाइट से अपना एडमिट कार्ड डाउनलोड कर सकेंगे। 


Sunday 20 January 2019

प्रिंसिपल समेत 22 सस्पेंड शिक्षक बहाल

18 jan 2019, page No.15



- सस्पेंशन रिव्यू कमेटी की बैठक में लिया गया फैसला
- जोनल लेवल पर अब नहीं होगा सस्पेंशन

औच निरीक्षण के दौरान गायब पाए गए शिक्षकों को बहाल करने का निर्देश जारी किया गया है। गुरूवार को नॉर्थ एमसीडी की ओर से इस संबंध में आदेश जारी किया गया है। जानकारी के मुताबिक नॉर्थ एमसीडी की सस्पेंशन रिव्यू कमेटी की बैठक में यह फैसला लिया गया है। बैठक में यह फैसला लिया गया है कि इन सभी को बहाल किया जाए लेकिन इन सभी के खिलाफ जांच जारी रहेगी। बता दें कि गत वर्ष जून माह के दौरान रोहिणी जोन के निठारी गांव स्थित एमसीपीएस नंबर-2 स्कूल में औचक निरीक्षण के दौरान कूल के प्रिंसिपल समेत 22 शिक्षकों को सस्पेंड कर दिया गया था। ऑफिस ऑर्डर एक जून को जारी किया गया था। डायरेक्टर एजुकेशन की ओर से जारी ऑफिस ऑर्डर में कहा गया था कि सभी को प्रोविजंस ऑफ रेगुलेशन 5(2) ऑफ डीएमसी सर्विसेज (कंट्रोल एंड अपील) रेगुलेशंस एक्ट, 1959 के तहत सस्पेंड किया गया है और पूरी इंक्वायरी होने तक सस्पेंड ही रहेंगे। 

औरों को भी है बहाली का इंतजार
निगम में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले कई शिक्षक आज भी अपनी बहाली का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन निगम उनकी सुध तक नहीं ले रहा है। ऐसे ही एक मामला है दिल्ली दर्शन घोटाले का पर्दाफाश करने वाले शिक्षक महिंद्र शर्मा व अन्य का। यहां पर चौंकाने वाली बात यह है कि इन सभी को लगभग साढे चार से अधिक सस्पेंशन समय बीत जाने के बाद भी बहाल नहीं किया गया है। न ही इस मामले में जांच सही तरीके से शुरू की गई है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि इस मामले की बिना किसी कारण कई महीनों से जांच रोक दी गई है। 

जोनल लेवल पर नहीं होगा सस्पेंशन
साथ ही कमिश्नर की ओर से एक सर्कुलर जारी किया गया है। इसमें साफ तौर पर स्पष्ट किया गया है कि अब कोई भी जोनल डिप्टी कमिश्नर या अथॉरिटी किसी भी निगम कर्मचारी को न तो सस्पेंड कर सकते हैं और सस्पेंशन को रद्द कर सकते हैं। इस तरह के फैसले लेने का अधिकार केवल कमिश्नर का है। सर्कुलर में कहा गया है कि कई मामले सामने आए हैं जिनमें यह देखा गया है कि जोनल लेवल पर ही सस्पेंड और सस्पेंशन रद्द किया जा रहा है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि सर्कुलर में इसके लिए निर्देश की जगह सुझाव का इस्तेमाल किया गया है। इससे एक सशक्त कमिश्नर के फैसले पर सवाल खड़ा हो गया है। 


- राजेश रंजन सिंह
साभार: पंजाब केसरी





सीसा पिघलाने से फैल रहा जहरीला धुआं

18 jan 2019, page No.7


- एनजीटी ने डीपीसीसी से मांगी रिपोर्ट
- अस्पताल निर्माण के लिए ग्राउंड वाटर इस्तेमाल, होगी डीएम जांच

 बाहरी दिल्ली में सीसा पिघलाने का खतरनाक व्यवसाय किया जा रहा है। इस प्रक्रिया के दौरान जहरीला धुआं उत्पन्न होता है जिससे आस-पास का पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। मामले की शिकायत ई-मेल के जरिए एनजीटी से की की गई है। एनजीटी ने मामले की गंभीरता को भांपते हुए दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी (डीपीसीसी) से कार्रवाई कर रिपोर्ट मांगी है। मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
दरअसल, एनजीटी से की गई शिकायत में बताया गया है कि बाहरी दिल्ली के कंझावला के पास पंजाब खोर गांव में सीसा पिघलाने का कारोबार किया जा रहा है। इसके कारण वातावरण में खतरनाक धुआं फैल रहा है जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसके चलते संक्रमण फैलने का भी डर बना हुआ है। अर्जी के जरिए इस खतरनाक कारोबर पर कार्रवाई की मांग की गई। जिस पर एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल अगुवाई वाली बेंच ने डीपीसीसी को कार्रवाई कर एक माह के भीतर रिपोर्ट मांगी है। बेंच ने यह भी स्प्षट किया है कि मामले में किसी प्रकार की कोई कोताही न बरती जाए। अन्यथा एनजीटी एक्ट 2010 के तहत कार्रवाई भी की जा सकती है।
बता दें कि सीसा एक विषैला धातु है। सीसा की चादरें, सिंक, सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण और कैल्सियम फास्फेट उर्वरक निर्माण में इस्तेमाल होता है। टेलीफोन केबल के ढकने में, बुलेट्स और पन्नियों के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं, सीसा चादरों का इस्तेमाल एक्स-रे और रेडियो ऐक्टिव किरणों से बचाव के लिए भी किया जाता है क्योंकि सीसा रेडिएशन शिल्डिंग भी कहा जाता है। सीसा और इसके उत्पाद मिट्टी और पानी को भी प्रदूषित कर देते हैं।


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पानी निकासी की होगी डीएम जांच
पीतमपुरा इलाके में एक अस्पताल के निर्माण के लिए भूमिगत जल का उपयोग किया जा रहा है। इस दौरान बड़ी मात्रा में पानी सर्विस रोड पर बहाया जा रहा है। दिल्ली जैसे शहर में बिना संबंधित एजेंसी से अनुमति लिए जमीन से पानी की निकासी अवैध है। उक्त तथ्यों के आधार पर मामले की शिकायत एनजीटी के की गई है। शिकायत पत्र के जरिए की गई है। इसे याचिका मानते हुए एनजीटी ने पूरे मामले में डीएम जांच के निर्देश जारी किए हैं। अब इस मामले की जांच नॉर्थ-वेस्ट डिस्ट्रीक के डिस्ट्रीक मजिस्ट्रेट करेंगे। एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल अगुवाई वाली बेंच ने नॉर्थ-वेस्ट डिस्ट्रीक डीएम को जांच कर कानून के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। एनजीटी ने मामले की पूरी जानकारी और एक्शन टेकन रिपोर्ट भी तलब की है। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। मामले में अगली सुनवाई अब 29 अप्रैल को होगी।


- राजेश रंजन सिंह
साभार: पंजाब केसरी

Wednesday 16 January 2019

मिड-डे मील स्कीम डाटा नहीं किया अपटेड तो कार्रवाई

16 Jan 2019, Page no.8, Punjab Keasri


- स्कूलों की नाफरमानी के चलते हेड क्वार्टर को निकालना पड़ा कड़ा आदेश
- सुप्रीम कोर्ट से भी लग चुकी है फटकार

 जिस मिड-डे मील स्कीम के कारण निगम स्कूलों में बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई, उसी स्कीम को लेकर निगम गंभीर नहीं है। स्कीम को किस कदर पलीता लगाया जा रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामला होने के बाद भी ऑनलाइन लिंक अपडेट करने के लिए डाटा नहीं भेजा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से बार-बार फटकार और स्कूलों की नाफरमानी के कारण अब हेड क्वार्टर (एचक्यू) को कड़ा आदेश निकालना पड़ा है। कहा जा रहा है कि निगम के जोनल अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे थे जिसके कारण अब हेड क्वार्टर को ही सख्त निर्देश जारी करना पड़ा है। 

बरती कोताही तो होगी कार्रवाई
पूरा मामला निगम स्कूलों में मिड-डे मील स्कीम डाटा से संबंधित है। इस संबध में नॉर्थ एमसीडी के एजुकेशन डिपार्टमेंट की ओर से ऑफिस ऑर्डर निकाला गया है। जिसमें साफ तौर पर यह आदेश दिया गया है कि 16 जनवरी यानि आज से विंटर ब्रेक खत्म होते ही सभी प्रिंसिपल मिड-डे मील का डाटा रोजाना (डेली बेसिस) पर शाम 5.30 बजे से पूर्व तैयार करना होगा। ताकि इस डाटा को मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएपआरडी) के पोर्टल पर अपलोड किया जा सके। ऑफिस ऑर्डर में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अब से इस संबंध में किसी भी प्रकार की कोताही बरतने पर सीधे तौर पर संबंधित स्कूल प्रिंसिपल और मिड-डे मील इंचार्ज को जिम्मेदार ठहराया जाए। साथ ही स्कूल इंस्पेक्टर भी इसके लिए जिम्मेदार होंगे। यानि इन पर कार्रवाई की जाएगी। 


गड़बड़ी छुपाने को नहीं देते डाटा 
गौरतलब है कि निगम स्कूलों को मिड-डे मील स्कीम से संबंधित सभी आंकड़े प्रतिदिन अपडेट करना बेहद जरूरी है। लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा था। निगम सूत्रों की मानें तो इन सब कामों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। जोनल यूनिट्स में मैन पॉवर की कमी के साथ ही स्कूलों में कंप्यूटर ऑपरेटर तक नहीं हैं। ऐसे में शिक्षकों को ही इन कामों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। जिसके कारण शिक्षण का समय इन्हीं कामों में व्यर्थ हो जाता है। शिक्षकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार हमें गैर शिक्षण कार्यों से अलग रखा जाए। साथ ही स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारें और ऐसे कामों के लिए ऑपरेटर नियुक्त करें। यह भी कहा जा रहा है कि जो कुछ सिफारशी स्कूल मिड-डे मील स्कीम में गड़बड़ी होने के कारण डाटा देने से बचते हैं। 



लिंक न बनाने पर लग चुका जुर्माना
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 23 मार्च 2017 सभी को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से एमएचआरडी पोर्टल परलिंक बनाकर मिड-डे मील योजनाओं की जानकारी अपलोड करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने यह काम तीन माह के भीतर पूरा करने के निर्देश दिए थे। ऑनलाइन लिंक बनाने में नाकाम रहने पर कड़ी कार्रवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पर दो लाख का जुर्माना भी लगाया था।


- राजेश रंजन सिंह
साभार: पंजाब केसरी

Tuesday 15 January 2019

Accurate employment data needed for capturing the increase in employment opportunities in the country

Addressing the workshop on Jobs and Livelihoods, organized by Confederation of Indian Industry in association with the Government of India here in New Delhi, Shri Piyush Goyal, Hon’ble Minister of Railways & Coal, Government of India, said that though the employment opportunities have gainfully increased in the economy, however, the data sources are unable to adequately capture this increasing trend. Host of new age industries have come up on the horizon which have improved the livelihoods of the people without necessarily translating into a concomitant pick up in employment as they are not getting captured in the formal payroll data, he noted. Efforts must be directed towards greater job formalization, including increased social security coverage to bring such employees into the formal jobs net, Mr Goyal highlighted. 
CII logo

Another important issue which Mr Goyal touched upon was the fact that due to the attraction of working in the government sector which comes with a host of social and job security benefits, there have been instances where a large number of people apply for government jobs which in turn are often used for painting a sorry state of the employment situation in the country. This according to him was an incorrect representation of the jobs scenario as it described the prevalent underemployment scenario more than unemployment one.


“We need to deliberate on new job openings in hitherto new areas such as Tourism and Healthcare, which carry a huge potential, owing to reformative policy measures of the government such as Ayushman Bharat etc”, Mr Goyal noted. The key stake holders namely the government, industry, experts and academia need to brainstorm to capitalize on these opportunities for generating gainful employment opportunities for the youth in these sectors, he further highlighted. In this respect, Mr Goyal noted that the capturing of employment data accurately is of prime importance. 

Concurring on the need for capturing the employment data accurately, Shri Prakash Javadekar, Minister of Human Resource Development, Government of India, remarked that concrete policy measures are needed for bridging this gap as anything which cannot be measured, cannot be improved. Creating a skilled labour force is also the need of the day to which the Government of India hasproactively responded by launching schemes such as Apprentice Training Course etc, he said. 

Earlier, setting the context, Dr. Soumya Kanti Ghosh, Group Chief Economic Advisor, State Bank of India too noted that though India has taken a big leap towards payroll reporting by releasing data from EPFO, ESIC andNPS, however, there are issues about the quality and measurement of data. The numbers are frequently revised and the classification of the EPFO job data has left a lot be desired, Dr Ghosh remarked. He flagged the need for using the big data for counting informal payroll in India as it is critical to also look at the portion of population outside the scope of social security. He gave the example of thetransport sector where during the NDA term, over 1.4 crore jobs have been created in this sector alone. Further, Dr Ghosh emphasized the fact that India did not have a job creation problem, but a wage problem.

In his opening remarks, Mr. Chandrajit Banerjee, Director General, CII highlighted that while jobs are providing livelihoods to millions of our people, it is more important to ensure good jobs and higher incomes. The quality of jobs, particularly to transition from the informal to the formal sector, is of the highest priority. However, to be able to do this effectively, the current position with data and analysis needs to be assessed and gaps identified, Mr Banerjeenoted.

The workshop which was organized by CII in association with the Government of India, saw the key stakeholders deliberate in areas such as Jobs and Livelihoods in formal sector, informal sector, new age sectors, entrepreneurship driven sectors and skills development for employability.The deep-dives into these select focus themes was to identify the specific issues and recommendations and present them in the form of an actionable report to the government.

सील दुकानों के बाहर ही शुरू हुआ कारोबार

15 Jan 2019, Punjab Kesari


- नॉर्थ एमसीडी व डीपीसीसी को कार्रवाई करने का निर्देश
- ​बढ़ रहा वायु- ध्वनि प्रदूषण
- एनडीएमसी एरिया में अवैध तहबाजारी से बढ़ेगा प्रदूषण

एमसीडी कार्रवाई के नाम पर सीलिंग तो करती है लेकिन इसके बाद सील की गई जगह की कोई सुध नहीं ली जाती है। शायद यही वजह है कि सीलिंग होने के बाद भी सील की गई दुकानों के बाहर फिर से अवैध रूप से कब्जा कर लिया जाता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है। पूरे मामले में एनजीटी नॉर्थ एमसीडी को कार्रवाई करने के लिए निर्देश जारी किया है। एनजीटी के समक्ष पेश एक मामले के अनुसार दिल्ली गेट इलाके में अतिक्रमण कर अवैध रूप से चलाए जा रहे स्कूटर रिपेयर मार्केट के कारण वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है। इतना ही नहीं, इसके कारण इलाके में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और लोगों की शांति भी भंग हो रही है।
अर्जी में यह भी बताया गया है कि मार्केट की दुकानों को साल 2017 के दौरान सील भी किया गया था। लेकिन फिर से सील की गई दुकानों के बाहर ही रिपेयर का काम शुरू कर दिया गया। इन तथ्यों को पुख्त करने के लिए फोटोग्राफ भी दिखाए गए। उक्त आरोप रेजिडेंट्स एंड शॉपकीपर्स ऑफ दिल्ली गेट की ओर से पत्र भेजकर लगाए गए हैं। पत्र में लगाए गए आरोपों को एनजीटी ने अर्जी के तौर पर स्वीकारते हुए एजेंसियों को कार्रवाई के लिए निर्देश दिया है। एनजीटी ने नॉर्थ एमसीडी व डीपीसीसी को संयुक्त रूप से इस संबंध में एक माह के भीतर जांच कर कार्रवाई करने को कहा है। इसके लिए एनजीटी ने डीपीसीसी को नोडल एजेंसी बनाया है। मामले की सुनवाई एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस एसपी वांगडी, जस्टिस के रामाकृष्णण और एक्सपर्ट मेंबर डॉ. नागिन नंदा की बेंच कर रही थी।

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एनडीएमसी एरिया में दी जा रही है अवैध तहबाजारी को मंजूरी
दिल्ली के पॉश एनडीएमसी एरिया में अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध तहबाजारी को मंजूरी दी जा रही है। इसके कारण लगभग एक हजार केरोसिन स्टोव का इस्तेमाल होगा। जिसके कारण प्रदूषण का स्तर भी तेजी से बढ़ेगा। इन तथ्यों के आधार पर नई दिल्ली म्यूनिसिपल कोरपोरेशन इंप्लाएज एसोसियशन ने एनजीटी से शिकायत की है। एसोसियशन की ओर से एनजीटी को पत्र के जरिए दी गई शिकायत में यह आरोप भी लगाया गया है कि ऐसा एनडीएमसी के इंफोर्समेंट डिपार्टमेंट की मिलीभगत से किया जा रहा है। पत्र द्वारा लगाए गए आरोपों को एनजीटी ने अर्जी के तौर पर स्वीकार किया है। एनजीटी चेयरपर्सन की अगुवाई वाली बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान संबंधित डिस्ट्रीक मजिस्ट्रेट (डीएम) और डीपीसीसी को संयुक्त जांच कर नियमानुसार कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया है। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। एनजीटी ने शिकायत और ऑर्डर की एक कॉपी दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी को भी भेजने का निर्देश दिया है।

- राजेश रंजन सिंह
साभार: पंजाब केसरी

Monday 14 January 2019

डीजल वाहनों से प्रदूषित हो रहा है प्रगति मैदान

14 Jan 2019, Punjab Kesari

ट्रैफिक पुलिस समेत अन्य एजेंसियों को जांच का निर्देश
आईटीपीओ में सीएनजी वाहन चलाने की ही है अनुमति


प्रगति मैदान में डीजल वाहनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इनका इस्तेमाल कोई बाहरी एजेंसी या आम लोग नहीं कर रहे बल्कि इंडिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन  (आईटीपीओ) खुद कर रही है। जबकि प्रगति मैदान में सिर्फ सीएनजी वाहन ही चलाने की अनुमति है। बावजूद इसके नियमों की अनदेखी कर आईटीपीओ डीजल वाहन दौड़ाए जा रहे हैं। इस संबंध में एनजीटी ने संबंधित एजेंसियों को जांच कर कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया है।
दरअसल, एनजीटी को पत्र के माध्यम से शिकायत की गई कि प्रगति मैदान (आईटीपीओ) में प्रतिबंध के बाद भी डीजल वाहन चलाए जा रहे हैं। पत्र में यह आरोप भी लगाया गया कि ऐसा अधिकारियों और आईटीपीओ संचालकों द्वारा मिलीभगत के चलते किया जा रहा है। पत्र को अर्जी के तौर पर स्वीकृति देते हुए एनजीटी ने डीसीपी (हेड क्वार्टर), दिल्ली ट्रैफिक पुलिस, रिजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर और डीपीसीसी को संयुक्त जांच करने के लिए निर्देशित किया है। इस जांच के लिए डीपीसीसी को नोडल एजेंसी बनाया गया है। एजेंसियों को जांच कर कार्रवाई करने के लिए एनजीटी ने एक माह का समय दिया है। एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली बेंच कर रही थी। बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुपलान न होने पर एनजीटी एक्ट 2010 के तहत एजेंसियों के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है।

अवैध वेल्डिंग व्यवसाय की होगी जांच
एनजीटी ने बिना मंजूरी के चल रही सभी औद्योगिक इकाइयों के विरुद्ध कार्रवाई करने का निर्देश जारी किया है। निर्देश डीपीसीसी को दिया गया है। एनजीटी ने यह निर्देश राजनगर, पालम के रिहायशी इलाकों में चल रही प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों के संबंध में जारी किया है। एनजीटी चेयरपर्सन की अगुवाई वाली बेंच ने डीपीसीसी को इस ओर गंभीरता से ध्यान देने को कहा है। एनजीटी ने कहा कि रिहायशी इलाके में वेल्डिंग शॉप जैसी कई इकाइयां बिना उचित मंजूरी के चल रही हैं।

- राजेश रंजन सिंह
साभार: पंजाब केसरी

Sunday 13 January 2019

दौड़ाए जा रहे हैं 20 साल पुरानेे वाहन

12 Jan 2019, Punjab Kesari


- एनजीटी ने दिए कार्रवाई के निर्देश
- कार्रवाई करे दिल्ली ट्रैफिक पुलिस-ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट

कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए दिल्ली में 20 साल पुराने वाहन दौड़ाए जा रहे हैं। बावजूद इसके काला धुआं छोड़ रहे इन वाहनों पर न तो दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की नजर है और न ही ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट की। रजिस्ट्रेशन खत्म यानि सडक़ों पर चलने की तय समय सीमा खत्म होने के बाद भी वाहन दौड़ाए जा रहे हैं। जिससे वे काला धुआं छोड़ रहे हैं और वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसेे वाहन साउथ दिल्ली के जंगपुरा इलाके में दौड़ाए जा रहे हैं। इन्हीं तथ्यों को आधार बनाकर एनजीटी को इसकी शिकायत की गई। पत्र द्वारा भेजे गए शिकायत को एनजीटी ने अर्जी के तौर पर स्वीकार किया है। पूरे मामले में एनजीटी ने संबंधित एजेंसियों को सख्त कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया है।

दिल्ली पुलिस कमिश्नर- ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी करे कार्रवाई
एनजीटी को दी गई जानकारी में शिकायतकर्ता ने बकायदा उन वाहनों यानि थ्री व्हीलरों के रजिस्ट्रेशन नंबरों की लिस्ट भी भेजी है। लिस्ट के मुताबिक इलाके में लगभग एक दर्जन ऐसे वाहन अवैध तौर पर चलाए जा रहे हैं। यह भी बताया गया है कि ये वाहन काला धुआं उगलते हुए निकलते हैं तो लोगों को मुंह पर कपड़ा लगाना पड़ता है। मामले की गंभीरता को देखते हुए एनजीटी ने साउथ ईस्ट डिस्ट्रीक के डीसीपी (ट्रैफिक) और रिजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर को कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया है। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने ऑर्डर के अनुपालन के लिए ऑर्डर की कॉपी दिल्ली पुलिस कमिश्नर और ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी को भी भेजने के लिए निर्देश दिया है।

प्रबंधित हैं 15 साल पुराने वाहन
बता दें कि 29 अक्टूबर 2018 को दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में 15 साल पुराने पेट्रोल और 10 साल पुराने डीजल वाहनों पर रोक लगाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने खास तौर पर ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट को आदेश दिया था कि वह यह घोषणा जारी करे कि अगर पुराने प्रतिबंधित वाहन सडक़ पर चलते दिखाई देते हैं तो उन्हें जब्त कर लिया जाएगा। जबकि 18 जुलाई 2016 को ही एनजीटी ने दिल्ली में 10 साल पुरानी डीजल गाडिय़ों पर बैन के आदेश दिए थे।

प्रदूषित हो रहे संजय लेक को बचाए डीडीए

11 Jan 2019 Punjab Kesari


स्थिति सुधार कर एक माह में रिपोर्ट पेश करे डीडीए
त्रिलोकपुरी स्थित संजय लेक की स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। लगभग 1 किलोमीटर के एरिया में फैले इस लेक में सीवेज का पानी का गिरता है। जिसके कारण यह प्रदूषित होता जा रहा है। इसका सीधा प्रभाव आसपास के वातावरण पर पड़ रह है। लिहाजा इस लेक को रिवाइव यानि पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम उठाए जाने की जरूरत है। इसी अपील के साथ एनजीटी को एक लेटर के जरिए जानकारी दी गई। इस लेटर के जरिए लगाए गए आरोपों को एनजीटी ने याचिका के तौर पर स्वीकृति देते हुए सुनवाई की।

प्रदूषित हो रहा लेक और वातावरण
इस संबंध में मामले की सुनवाई कर रही एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली बेंच ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। डीडीए को एनजीटी ने संजय लेक को पुनर्जीवित करने के लिए एक माह का समय दिया है। एक माह के बाद इस संबंध में डीडीए से एनजीटी के समक्ष एक रिपोर्ट भी पेश करने का निर्देश दिया गया है। बता दें कि बीके बंसल नाम के शख्स की ओर से एनजीटी को पोस्ट द्वारा एक लेटर भेजकर संजय लेक के प्रदूषित होने की जानकारी दी गई थी।
ईस्ट दिल्ली के त्रिलोकपुरी में स्थित संजय लेक बारिश के पानी से रिचार्ज होता है। लेकिन बीते कुछ सालों से इसमें सीवेज का गंदा पानी भी गिरता है। जिसके कारण इसकी स्थिति काफी बिगड़ चुकी है। इससे पहले भी कई बार लोकल एजेंसियों ने भी इसे पुनर्जीवित करने की दिशा में काम किया लेकिन सफलता नहीं मिली। 

गिरते वाटर लेवल के लिए डीडीए जिम्मेदार
एनजीटी के समक्ष पहले भी कई मामलों में डीडीए को गिरते ग्राउंड वाटर के जिम्मेदार ठहराया जा चुका है। वाटर बॉडीज से ही संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा था कि दिल्ली के विकास ने ही दिल्ली का विनाश कर दिया है। इसमें सबसे अहम भूमिका डीडीए की रही है। डीडीए ने राजधानी के ग्राउंड वाटर लेवल (भूजल स्तर) को गिराने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी। एनजीटी के समक्ष दी गई एक जानकारी के मुताबिक डीडीए ने लगभग 932 एकड़ के वाटर बॉडी एरिया का कमर्शियल तौर पर लैंडयूज ही बदल दिया और उन जगहों पर कंस्ट्रक्शन कराई गई जिसके फलस्वरूप वर्तमान में दिल्ली का ग्राउंड वाटर लेवल तेजी से नीचे जा रहा है। दिल्ली सरकार और निगमों ने इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह जानकारी एनजीटी में चल रहे वाटर बॉडीज के एक मामले में याचिकाकर्ता की ओर से दी गई थी।

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बवाना इंडस्ट्रीयल एरिया में नहीं रूक रहा अवैध बोरवेल
अवैध बोरवेल और गिरते वाटर लेवल पर एनजीटी ने फिर से चिंता जाहिर की है। एक मामले की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने अवैध बोरवेल और अवैध निर्माणों को लेकर डीपीसीसी को कार्रवाई करने का निर्देश जारी किया है। याचिककाकर्ता की ओर से एनजीटी के समक्ष जानकारी दी गई कि बाहरी दिल्ली के नरेला-बवाना इंडस्ट्रीयल एरिया में अवैध बोरवेल, अवैध निर्माण और कचरा भी जलाया जलाया जा रहा है लेकिन लोकल एसडीएम इन मामलों में कोई कार्रवाई ही नहीं कर रहे। बता दें कि गत वर्ष 13 जुलाई को एनजीटी ने निर्देश जारी किया था कि उसके अगले आदेश तक किसी भी प्रकार से ग्राउंड वाटर की निकासी न हो।


- राजेश रंज​न सिंह
साभार: पंजाब केसरी

Friday 11 January 2019

मुद्दत हुई कि...❤
मुद्दत हुई कि हम मिले थे
कितना हसीं था वो लम्हा
जब थामा था मैंने तुम्हारा हाथ
कांपने लगे थे तुम्हारें होंठ
एक सिहरन सी दौड़ गई थी
पूरे बदन में तुम्हारे
कंपकंपाते होठों से ही तुमने
चूमा था मेरे होठों को
और कहा था न जाना छोडक़र कभी
पर ये क्या
बसंत की तरह आए थे
जीवन में
और नैनों को भादो करके चले गए
हम तो उसी लम्हें में जिए जा रहे हैं
मोहब्बत के नाम पर वो लम्हा ही काफी है
मुझे उस लम्हें से ही मोहब्बत ❤है।
©राजेश रंजन सिंह

Swift and Continuous Actions by GST Council Shows Complete Commitment of Government to Ensure Facilitative Tax Regime: CII

CII has strongly welcomed the proactive measures taken by the GST Council in its 32nd meeting held on 10th January 2019. “The GST Council led by Mr Arun Jaitley, Minister of Finance and Corporate Affairs, has once again shown its complete commitment to ensuring a smooth and facilitative indirect tax regime in the country, stated Mr Chandrajit Banerjee, Director General, CII.
CII logo


In a press release, CII noted that the GST Council, since the introduction of the GST in July 2017, has continuously moved towards a simpler tax system. It has steadily reduced the tax rates on many items, ensuring a movement towards a 3-slab GST structure with a standard rate, a higher demerit rate and a lower rate for items consumed by the poor.
The Council has further proactively addressed procedural matters, enabling smaller enterprises to file returns at intervals and extending the time for adjustment. It has also taken up issues of consistency to minimize disputes and litigation, stated the CII press release.
CII said that the Council’s decision to double the threshold limit for exemption from registration and payment of GST to Rs 40 lakh in the general category states brings huge relief to lakhs of small enterprises. These would no longer be liable to prepare returns and pay taxes from April 1, 2019, enabling them to conduct their business smoothly.
CII welcomed the extension of the composition scheme for services in particular. It stated that including suppliers of services and mixed suppliers under the composition scheme with a tax rate of 6% would greatly help small service providers and professionals earning less than Rs 50 lakhs per annum. It would lower costs for buyers of these services down the supply chain as well. CII had recommended including services enterprises under the Composition Scheme and thanks the GST Council for this decision.
Felicitating the GST Council for raising the turnover limit for the composition scheme from Rs 1 crore to Rs 1.5 crore, CII said that this would release numerous small enterprises from the procedural burden. Further, these enterprises can file returns annually, freeing them from the need to maintain documents on a quarterly basis.
A key decision of the GST Council was to set up a group of ministers to look at the possibility of introducing the composition scheme for the residential real estate sector. The residential sector has been impacted due to the divergence between GST on under-construction and finished houses as well as introduction of Real Estate Regulation Act (RERA) simultaneously. CII hopes that the committee would provide relief to the housing sector, particularly low-cost housing.
With such progressive decisions from the GST Council headed by the Finance Minister Mr Arun Jaitley, CII is confident that GST will emerge as a game-changer for the Indian economy and fulfill the promise of adding 1-1.5 percentage points to the GSP growth rate within the shortest period of time.

Thursday 10 January 2019

झरोखों से देखें राजपूती शान

Hawa Mahal
हते हैं कि राजपूती शान खुली खिड़कियों से देखने का शौक हो तो हवा महल जरूर देखना चाहिए। जी हां, वही हवा महल जिसे सवाई प्रताप सिंह द्वारा सन 1799 में बनवाया गया था। हवा महल को जयपुर सिटी की पहचान भी कहा जाता है। 
हवा महल के इतिहास की जानकारी देता बोर्ड


वास्तुकार लाल चंद उस्ता ने हवा महल को राजमुकुट की तरह डिजाइन किया था। पांच-मंजिलों वाली यह इमारत ऊपर से तो केवल डेढ़ फुट चौड़ी है लेकिन बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है। जानकारी के मुताबिक इसमें 953 बेहद खूबसूरत, रंगीन और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार झरोखे यानि खिड़कियां हैं। कहा जाता है कि इन खिडकियों को जालीदार इसलिए बनाया गया था ताकि राजघराने की महिलाएं इन झरोखों से महल के नीचे सडकों के समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की जिंदगी की गतिविधियों को देख सकें। 




चूने, लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से हवा महल का निर्माण कराया गया था। हवा महल को सिटी पैलेस का ही हिस्सा कहा जाता है। साल 2005 में हवामहल के जीर्णोद्धार की शुरूआत करते हुए महल की भीतरी टूट-फूट और रंग-रोगन के साथ हवामहल की दीवार पर भी नया गेरूंआ रंग किया गया।




हवा महल के भीतर ही एक म्यूजियम भी जहां पर ऐंटिक मूर्तियां रखी गई हैं। 

Wednesday 9 January 2019

Total Shut Down in DU for 2 days

Teachers express anger against the VC and Government

The DUTA congratulates the teachers of Delhi University who participated enthusiastically in the 2 day shut-down of the University. Teaching in colleges came to a standstill as DUTA activists moved across colleges to mobilize teachers for today’s dharna. Today, thousands of teachers turned up in large numbers at Gate No. 1 to express their collective anger at the failure of the Government and the Vice-Chancellor to resolve their long standing demands.

The success of the shut-down is testimony to the fact that teachers are unwilling to tolerate the Government’s single minded agenda to destroy public funded education. Apart from the push to privatization and commercialization, the realization that thousands are languishing without permanent jobs, promotions have become a distant proposition for most teachers and pensioners are facing huge set-backs in the twilight of their life has pushed the all sections of teachers of DU on the warpath.

Speakers also highlighted the complete failure of the Vice-Chancellor of DU to ensure the adoption of the UGC Regulations 2018 so that teachers denied promotions for long years can get their rightful due. The over-bureaucratic approach of the VC has paralyzed the academic and administrative functioning of the University. The DUTA warns the Vice-Chancellor to desist from further procrastination and immediately call a meeting of the Academic Council and table the recommendations of the committee set up to facilitate the framing of relevant Ordinances in accordance with UGC Regulations.

The palpable anger at the Government’s denial of even the most basic rights to teachers including revised allowances and pensions, resolutions of the anomalies of the VI Pay Revision including stepping up, removal of the negative clauses of the UGC Regulations and denial of pension through challenges to rightfully won court cases, was expressed through slogans and speeches. The young teachers are particularly exercised by the fact that appointments have been delayed for one reason or the other and neither the Government nor the University is willing to take cognizance of their plight. The silence on the issue of the reservation roster to ensure treating the University/ College as a unit clearly shows the Govt’s intention.

The DUTA also expressed its solidarity with the All India Trade Union Strike and is determined to join hands with all sections of society to fight for the scrapping of the NPS and the demands of absorption/ regularization.

Tuesday 8 January 2019

परिवार, आर्थिक तंगी और रिश्तों की कहानी बयां करती आधे-अधूरे




सोचिए उस परिवार के बारे में जो कहने तो एक साथ रहता है। लेकिन आपस में ही किसी की किसी से भी नहीं बनती और न ही कोई एक दूसरे से खुश है। परिवार के मध्य में एक अधेड़ उम्र की महिला है जो अपनी शादीशुदा जिंदगी से ही खुश नहीं है। आधे आधूरे आर्थिक तंगी, घरेलू कलह और उलझे रिश्तों की कहानी है। मोहन राकेश के नाटक आधे-अधूरे का मंचन श्रीराम सेंटर में किया गया। मंचन अमर शाह के निर्देशन में किया गया। नाटक में परिवार के सदस्यों ने जहां दर्शकों को गुदगुदाया, वहीं सभी सदस्यों की मन: स्थिति को भी सोचने पर विवश कर दिया। 
सावित्री नाटक की मुख्य पात्र है जो महेंद्रनाथ से प्रेम विवाह करती है। काम धंधा न चल पाने की वजह से महेंद्र घरेलू जरूरतों को ठीक से पूरा नहीं कर पाता है और सावित्री को नौकरी कर घर चलाना पड़ता है। सावित्री अपने पति को नकारा मान लेता है जिसका परिवार में कोई महत्व ही नहीं है। आपसी मेलजोल न होने के बाद भी समाज व परंपरा निभाने के लिए दोनो साथ रहते है। पति-पत्नी के रिश्तों का असर तीनों बच्चों पर भी पड़ता है।

 इसी बीच सावित्री की जिंदगी में चार और पुरुष आते हैं पर सभी आधे-अधूरे हैं। बड़ी बेटी अपनी मां के प्रेमी के संग भागकर शादी कर लेती है। उसका पति आर्थिक रूप से सक्षम ह, लेकिन फिर भी वह उसके साथ खुश नहीं रह पाती। छोटी बेटी स्कूल में है पर उसे पढ़ाई से ज्यादा रुचि लडक़ोंं में है। बेटा है जो नौकरी नहीं करना चाहता और इस बात पर सवित्री से अक्सर उसका झगड़ा होता रहता है।



8 Jan 2019

8 Jan 2019

इंक्रेडिबल इंडिया : चूहों वाला मंदिर




मुगल शैली में बना है करणी माता मंदिर
कहते हैं चूहों की वजह से प्लेग जैसी जानलेवा बीमारी फैलती हैं। यदि इनसे इंफैक्शन फैल जाए तो जान तक चली जाए। लेकिन एक ऐसी भी जगह है जहां पर सौ-दौ सौ नहीं बल्कि हजारों की संख्या अनगिनत चूहे रहते हैं और इनका झूठा प्रसाद खाया और पानी पीया जाता है। यहां आकर आप भी कह उठेंगे इंक्रेडिबल इंडिया। दरअसल, राजस्थान के बीकानेर में एक मंदिर है जिसे करणी माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। बीकानेर से 30 किलोमीटर की दूरी पर देशनोक में स्थित यह मंदिर करणी माता को समर्पित है। बता दें कि करणी माता को दुर्गा माता के अवतार के रूप में मना जाता है। कहा जाता है कि 15 वीं शताब्दी में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करणी माता के मंदिर का निर्माण कराया था। यह शायद एकमात्र ऐसा हिंदू मंदिर है जिसे मुगल शैली की वास्तुकला से प्रभावित हो कर बनवाया गया था।


सफेद चूहा दिख जाए तो लाइफ बन जाए 
यहां आने वाले श्रद्धालुओं को यह खास ध्यान रखना पड़ता है कि पैरों की नीचे कोई चूहा न आ जाए। मंदिर के नियमों के मुताबिक चूहों को किसी भी प्रकार से कोई हानि नहीं पहुंचनी चाहिए। चूहे को हानि पहुंचाना मंदिर में एक बहुत बड़ा पाप माना जाता है। कहा जाता है कि यदि गलती से भी कोई चूहा किसी की गलती की वजह से मर जाए तो सोने या चांदी का चूहा मंदिर में देना पड़ता है। इस मंदिर को लेकर एक खास मान्यता है कि यदि आने वालों को सफेद चूहा दिख जाए तो मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर के चूहों की एक खासियत यह भी है कि सुबह और शाम की आरती के समय अधिकांश चूहे बाहर आ जाते हैं और माता पर चढ़ाए प्रसाद को पहले खाते हैं।








माता ने जीवित रखने के लिए बनाया चूहा
इस मंदिर को लेकर ढेरों लोक कथाएं प्रचालित हैं। उनमें से ही एक कथा है कि एक समय करीब बीस हजार सैनिक एक जंग से अपनी जान बचा के भाग खड़े हुए थे और सभी सैनिक देशनोक पहुंच गए। उस समय जंग से भागना बहुत बड़ा जुर्म माना जाता था और मौत की सजा दी जाती थी। लेकिन करणी माता ने सब पर रहम करते हुए जान नहीं ली। चूंकि सजा देना ही था तो उन्होंने सजा के तौर पर माता ने सभी को चूहा बना दिया। चूहा बनाने के बाद जिस जगह आज मंदिर बना है वह जगह उन्होंने चूहों को रहने के लिए दे दी। चूहों ने भी प्रण ले लिया कि वह सदैव ही माता के पास रहेंगे। कहा जाता है कि इनमें से कोई चूहा नहीं मरता। न ही इन चूहों में से कोई बाहर जाता है और न ही कोई बाहर से अंदर आता है।





Wednesday 2 January 2019

मैं दिल्ली हूं मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं



                            नए अंदाज में दिखेगा शाहजहां का शाहजहांनाबाद

मैं शाहजहांनाबाद हूं। हां वहीं शाहजहांनाबाद जिसे मुगल बादशाह अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मोहम्मद खुर्रम उर्फ शाहजहां ने बसाया था। वही, शाहजहांनाबाद जिसे कभी अफगान बादशाह अहमद शाह अब्दाली ने तो कभी अंग्रेजों द्वारा उजाड़ा जाता रहा। इतिहास के पन्नों में बसता-उजड़ता शाहजहांनाबाद फिर से संवरने की आस संजोए बैठा है। गनीमत है कि एक बार फिर से सरकार ने इसे संवारने और इसके ऐतिहासिक वजूद को दोबारा पुनर्जीवित करने की पहल की है। देखना होगा कि क्या इसकी पहचान वापिस मिलेगी या फिर शाहजहांनाबाद की ऐतिहासिक जमीन टूटी सडक़ों, ट्रैफिक जाम और बदलती सियासत के बीच फंसकर अपनी ऐतिहासिक पहचान खोती रहेगी।  

इतिहास को दिखाए गए सपने
बता दें कि शीला दीक्षित की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार के समय में साल 2006 के दौरान शाहजहांनाबाद रिडेवलपमेंट कोरपोरेशन (एसआरडीसी) का गठन किया गया। इसके गठन का मकसद ही शाहजहांनाबाद एरिया को पुनर्जीवित करना था। लेकिन योजना इतिहास के पन्नों की तरह ही धूंधली होती रही। साल 2011 में पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने यहां पर बैट्री बसें और ई-रिक्शा चलाने के सपने दिखाए तो दिल्ली के तत्कालीन एलजी नजीब जंग के समय ट्राम चलाने को लेकर सिर्फ खबरों में सूर्खियां बटोरी गईं। 

संवरेगा शाहजहांनाबाद का दिल चांदनी चौक
एसआरडीसी ने एक बार फिर से शाहजहांनाबाद के दिल चांदनी चौक को संवारने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं। जानकारी के मुताबिक सीसीटीवी से लैस करने का साथ ही लाल किले से लेकर फहतेहपुरी के बीच एक किमी की सडक़ का सौदर्यीकरण किया जाएगा। इस पर 65 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। इसके अलावा शाहजहांनाबाद की सबसे महत्वूपर्ण सडक़ को चार लेन में बांटा जाएगा। जहां ट्रैफिक जाम की समस्या को दूर करने के लिए दिन में वाहनों की नो-एंट्री होगी। 1500 कारों की पार्किंग भी बनाई जाएगी।

इको-फ्रैंडली चांदनी चौक
योजना के मुताबिक चांदनी चौक को पूरी तरह से इको-फ्रैंडली बनाया जाएगा। इसे हकीकत में तब्दील करने के लिए इलेक्ट्रिक ट्राम चलाने, रिक्शा स्टैंड बनाने, साइकिल पार्किंग, विभिन्न जगहों पर नए पेड़ लगाने, सेंट्रल वर्ज की चौड़ाई बढ़ाकर 3.5 मीटर करने की योजना है।

विदेश की तर्ज बैठ सकेंगे सडक़ों किनारे
चांदनी चौक रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट की मानें तो वो दिन दूर नहीं है जब विदेशों की तर्ज पर चांदनी चौक में भी सडक़ों के किनारे बेंच व फर्नीचर पर बैठकर लुत्फ उठा सकेंगे। एसआरडीसी ने सडक़ों के दोनों साइड डिजाइनर बेंच व फर्नीचर लगाने की योजना तैयार की है जिसे प्रोजेक्ट में भी शामिल किया गया है। प्रोजेक्ट के पूरा के होने के बाद फुटपाथ पर भी अतिक्रमण की कोई गुंजाइस नहीं बचेगी। स्वच्छता बनाए रखने के लिए सेंट्रल वर्ज में हाइटेक व लेटेस्ट मॉडल के टॉयलेट ब्लॉक्स बनाए जाएंगे।

सभी तारों को किया जाएगा अंडरग्राउंड
पुराने लूक में ढ़ालने के लिए चांदनी चौक में से गुजरने वाली हर तार चाहे वह बिजली की हो या फोन की, सभी को अंडरग्राउंड किया जाएगा। सडक़ों के बीच से भी किसी प्रकार के तार को ले जाने की इजाजत नहीं होगी। यहां तक कि बिजली के ट्रांसफरों को भी फुटपाथ या सेंट्रल वर्ज पर शिफ्ट किया जाएगा। सडक़ों को और दोनों साइड को फ्री रखने के लिए पुलिस चौकी भी सेंट्रल वर्ज पर ही बनाई जाएगी।


शुरू हो चुका है प्रोजेक्ट पर काम
फिलहाल चांदनी चौक को उसके पुराने स्वरूप को नए अंदाज में ढ़ालने के लिए काम शुरू किया जा चुका है। काम दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग की देखरेख में चल रहा है जिसकी निगरानी हाईकोर्ट भी कर रहा है। इस प्रोजेक्ट में नॉर्थ एमसीडी, दिल्ली पुलिस, बीएसईएस यमुना, दिल्ली जल बोर्ड, आईजीएल,एमटीएनएल समेत कई एजेंसियों का अहम सहयोग है। एसआरडीसी के मुताबिक 2019 में प्रोजेक्ट पूरा होने की उम्मीद है जबकि हाईकोर्ट ने मार्च 2019 तक काम पूरा करने के निर्देश दिए हैं। शाहजहांनाबाद वाली दिल्ली के उजड़ते-संवरते स्वरूप पर कवि रामावतार त्यागी की पंक्तियां सटीक बैठती है कि:

मैं दिल्ली हूं मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं ।
अपने आंगन में सपनों की, हर ओर कतारें देखीं हैं।
मुझको सौ बार उजाड़ा है, सौ बार बसाया है मुझको ।
अक्सर भूचालों ने आकर, हर बार सजाया है मुझको।

- राजेश रंजन सिंह