Tuesday, 8 January 2019

परिवार, आर्थिक तंगी और रिश्तों की कहानी बयां करती आधे-अधूरे




सोचिए उस परिवार के बारे में जो कहने तो एक साथ रहता है। लेकिन आपस में ही किसी की किसी से भी नहीं बनती और न ही कोई एक दूसरे से खुश है। परिवार के मध्य में एक अधेड़ उम्र की महिला है जो अपनी शादीशुदा जिंदगी से ही खुश नहीं है। आधे आधूरे आर्थिक तंगी, घरेलू कलह और उलझे रिश्तों की कहानी है। मोहन राकेश के नाटक आधे-अधूरे का मंचन श्रीराम सेंटर में किया गया। मंचन अमर शाह के निर्देशन में किया गया। नाटक में परिवार के सदस्यों ने जहां दर्शकों को गुदगुदाया, वहीं सभी सदस्यों की मन: स्थिति को भी सोचने पर विवश कर दिया। 
सावित्री नाटक की मुख्य पात्र है जो महेंद्रनाथ से प्रेम विवाह करती है। काम धंधा न चल पाने की वजह से महेंद्र घरेलू जरूरतों को ठीक से पूरा नहीं कर पाता है और सावित्री को नौकरी कर घर चलाना पड़ता है। सावित्री अपने पति को नकारा मान लेता है जिसका परिवार में कोई महत्व ही नहीं है। आपसी मेलजोल न होने के बाद भी समाज व परंपरा निभाने के लिए दोनो साथ रहते है। पति-पत्नी के रिश्तों का असर तीनों बच्चों पर भी पड़ता है।

 इसी बीच सावित्री की जिंदगी में चार और पुरुष आते हैं पर सभी आधे-अधूरे हैं। बड़ी बेटी अपनी मां के प्रेमी के संग भागकर शादी कर लेती है। उसका पति आर्थिक रूप से सक्षम ह, लेकिन फिर भी वह उसके साथ खुश नहीं रह पाती। छोटी बेटी स्कूल में है पर उसे पढ़ाई से ज्यादा रुचि लडक़ोंं में है। बेटा है जो नौकरी नहीं करना चाहता और इस बात पर सवित्री से अक्सर उसका झगड़ा होता रहता है।



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