मुद्दत हुई कि...
मुद्दत हुई कि हम मिले थे
कितना हसीं था वो लम्हा
जब थामा था मैंने तुम्हारा हाथ
कांपने लगे थे तुम्हारें होंठ
एक सिहरन सी दौड़ गई थी
पूरे बदन में तुम्हारे
कंपकंपाते होठों से ही तुमने
चूमा था मेरे होठों को
और कहा था न जाना छोडक़र कभी
पर ये क्या
बसंत की तरह आए थे
जीवन में
और नैनों को भादो करके चले गए
हम तो उसी लम्हें में जिए जा रहे हैं
मोहब्बत के नाम पर वो लम्हा ही काफी है
मुझे उस लम्हें से ही मोहब्बत है।
कितना हसीं था वो लम्हा
जब थामा था मैंने तुम्हारा हाथ
कांपने लगे थे तुम्हारें होंठ
एक सिहरन सी दौड़ गई थी
पूरे बदन में तुम्हारे
कंपकंपाते होठों से ही तुमने
चूमा था मेरे होठों को
और कहा था न जाना छोडक़र कभी
पर ये क्या
बसंत की तरह आए थे
जीवन में
और नैनों को भादो करके चले गए
हम तो उसी लम्हें में जिए जा रहे हैं
मोहब्बत के नाम पर वो लम्हा ही काफी है
मुझे उस लम्हें से ही मोहब्बत है।
©राजेश रंजन सिंह
Bahut gehrai me likhe ho. 😊
ReplyDeletethanksss
DeleteGd
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