परिंदे का घोंसला
उड़ गया था वो परिंदा घोंसले से
कर बैठा आसमान से मोहब्बत
लौटा था थककर घोंसले में फिर से
लेकिन वो अब पहले जैसा न था
याद आती थी उसे अब भी
वो आसमान की ऊंचाई
वो उनमुक्त उड़ान
कैदखाना लगता था अब घोंसला
भूल गया था उडऩे से पहले
थकने के बाद
यही घोंसला आराम देता है
उम्र बीती तो परिंदे ने जाना
घोसला कैद नहीं
जन्नत है जमीं पर..
इंसानी फितरत भी कुछ ऐसी ही है
उड़ो रंजन, मगर याद रहे
घोंसले बिना जीवन नहीं..
कर बैठा आसमान से मोहब्बत
लौटा था थककर घोंसले में फिर से
लेकिन वो अब पहले जैसा न था
याद आती थी उसे अब भी
वो आसमान की ऊंचाई
वो उनमुक्त उड़ान
कैदखाना लगता था अब घोंसला
भूल गया था उडऩे से पहले
थकने के बाद
यही घोंसला आराम देता है
उम्र बीती तो परिंदे ने जाना
घोसला कैद नहीं
जन्नत है जमीं पर..
इंसानी फितरत भी कुछ ऐसी ही है
उड़ो रंजन, मगर याद रहे
घोंसले बिना जीवन नहीं..
©राजेश रंजन सिंह
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