Sunday, 30 December 2018

इतिहास का खजाना जयगढ़ फोर्ट





जयगढ़ फोर्ट में जयवाण तोप 
इतिहास से रूबरू होने का शौक हो तो शौकीनों को राजस्थान की राजधानी जयपुर एक बार जरूर जाना चाहिए। यूं तो जयपुर में कोई ऐसी जगह नहीं है जिसका अपना इतिहास न हो। लेकिन जयगढ़ किला (जयगढ़ फोर्ट) अपनी वास्तुकला के साथ-साथ उस तोप के लिए भी ऐतिहासिक है जिसका इस्तेमाल सिर्फ एक बार किया गया, वो भी टेस्ट-फायरिंग के लिए। कहा जाता है कि इसके बाद इसके इस्तेमाल की जरूरत ही नहीं पड़ा।   

किलेबंदी और जयवाण तोप



जयगढ़ किले पर रखी इस तोप को जयवाण तोप के नाम से जाना जाता है। इसे सबसे बड़ी तोप का दर्जा हासिल है। तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। जबकि सिर्फ नाल की लंबाई 20 फीट, गोलाई 8 फीट साढ़े सात इंच है। इस तोप का वजन 50 टन है। इस तोप में 8 मीटर लंबे बैरल रखने की सुविधा है। 35 किलोमीटर तक मार करने वाले इस तोप को एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर की जरूरत होती थी। इसके पहियों की ऊंचाई 9 फीट जबकि मोटाई एक फीट है। अधिक वजन के कारण इसे किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही कभी युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था। विध्वंशक होने के बाद भी यह तोप तत्कालीन आमेर के कारीगरों की कला प्रेम व कार्य कुशलता का अनूठा नमूना कहा जाता है। तोप के मुहाने पर हाथी, बीच में बल्लारी और पीछे की ओर पक्षी युगल बनाया गया है। इसका निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के शासनकाल के दौरान सन 1720 में जयगढ़ किले के कारखाने में ही किया गया था। 


म्यूजियम में हथियारों का जखीरा
जयगढ़ किले में बने म्यूजियम में तत्तकालीन समय के विभिन्न हथियारों को संजोकर रखा गया है। यहां पर 1662 में महाराजा मान सिंह के समय में बने मच्छवाण तोप से लेकर 17वीं सदी में बने रॉकेट व 18वीं सदी में इस्तेमाल होने वाले पिस्टल भी देखे जा सकते हैं। रणचंडी तोप के साथ-साथ युद्ध के समय पहने जाने वाले लोहे के बने वस्त्रों को देखकर इतिहास की जानकारी पा सकते हैं।





















जानें कैसे रहते थे महाराजा-महारानी
किले में लक्ष्मी विलास (महाराजा का निवास स्थान), विलास मंदिर (महारानियों का निवास स्थान), सुभट निवास (योद्धाओं की बैठक), खिलबति निवास (सेना नायकों से मंत्रणा की जगह),  शाही भोजनशाला, ललित मंदिर और आराम मंदिर हैं जो शासन के दौरान शाही परिवार रहने पर इस्तेमाल करते थे। यहां एक शस्त्रागार और योद्धाओं के लिए एक हॉल के साथ एक म्यूजियम है जिसमें पुराने कपड़े, पांडुलिपियां, हथियार और राजपूतों की कलाकृतियां हैं।






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