Sunday 26 August 2018

अब भी गुमनाम है लोहारहेड़ी की बावली



द्वारका सबसिटी के ऊंची इमारतों के बीच एक गुमनाम घरोहर भी मौजूद है। जिसे द्वारका की बावली या लोहारहेड़ी की बावली के मान से जाना जाता है। इसकी खुदाई कुछ साल पहले ही की गई है। खुदाई के दौरान इसके लोदी काल में बने होने के प्रमाण मिले थे। उल्लेखनीय है कि जफर हसन नाम के इतिहासकार की इतिहास से संबंधित किताब में भी द्वारका बावली (तत्कालीन लोहारहेड़ी बावली) के लोदी काल में ही हुए निर्माण का जिक्र है। 

कहा जा रहा है कि गुमनाम दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक द्वारका बावली (बावड़ी) एक बार फिर पानी से लबालब नजर आएगी। राज्य पुरातत्व विभाग इस बावड़ी में जल्द वाटर कंजरवेशन की व्यवस्था करने जा रहा है, ताकि आसपास के इलाकों से बारिश का पानी बावड़ी में इक_ा हो। यदि ऐसा होता है तो द्वारकावासियों समेत दिल्लीवालों को सुकून भरा एक प्राकृतिक स्थल के अलावा एक पिकनिक स्पॉट मिल जाएगा। राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार द्वारका बावली में वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की जाएगी। इस परियोजना के तहत बारिश के दौरान आसपास के इलाकों में गिरने वाला पानी बावड़ी में इक_ा किया जाएगा, ताकि बावड़ी का पुराना स्वरूप लौटे। इसके अलावा इस योजना से दिनों-दिन गिर रहे भूजल स्तर में भी सुधार होगा जिससे आसपास के इलाकों का जलस्तर सुधारेगा।


45 वर्ष पहले पानी से भरी थी बावली
खुदाई के दौरान मिली जानकारी के अनुसार द्वारका बावली लगभग 40 साल पहले तक पानी से भरी रहती थी। लेकिन समय के साथ पानी का यह स्रोत सुखता चला गया। द्वारका बसने के बाद जानकारी के अभाव में गंगोत्री अपार्टमेंट से सटे होने के कारण यह कूड़ास्थल में तब्दील होता गया। आस-पास के लोगों का कहना है कि खुदाई से पूर्व इस ऐतिहासिक बावली के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।


बावली की परिभाषा
सदियों पहले पानी की आपूर्ति के लिए कुएं की तर्ज पर बावली का निर्माण किया जाता था। इनमें सीढिय़ां बनी होती हैं और प्राकृतिक स्रोत के जरिए बावली में नीचे से ऊपर की ओर पानी आता है। जिससे लोगों को पेयजल की प्राप्ति होती थी।

क्या थी स्थिति
द्वारका स्थित बावली की खोज साल 2011 में राज्य पुरात्तव विभाग द्वारा की गई थी। जिसे तत्कालीन समय में लोहारहेड़ी बावली के नाम से जाना जाता था। खोज के समय यह एक निजी स्कूल और आवासीय परिसर के पास एक खाली भूखंड पर स्थित था और सघन झाडिय़ों व घने पत्तों ढक़ा एक छोटे से गड्ढ़े की तरह दिखाई देता था। जिसे राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन व संरक्षण करने के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फोर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) को सौंपा था।

क्या है वर्तमान स्थिति
आज के समय में बावली दिल्ली पुरातत्व कानून के तहत संरक्षण व सहेजने के लिए सरकार द्वारा पहचाने गए 15 स्मारकों में से एक है। यहां पर लगभग 30 फुट की खुदाई की जा चुकी है। अब धनुषाकार माध्यम से जुड़े दो मंजिलों को साफ तौर पर देखा जा सकता है। दोनों ओर की दीवारों पर उभरे मेहराबों से इसके लोधी काल में बने होने के संकेत मिल रहे हैं। यह एक अपने आप में खास तरह की संरचना है क्योंकि राजधानी में इस तरह की दूसरी कोई संरचना नहीं है। फिलहाल इसकी चारदीवारी भी करा दी गई है। बाहर लगे बोर्ड के मुताबिक इसका क्षेत्रफल 377 स्क्वायर मीटर है।



साभारः पंजाब केसरी
राजेश रंजन सिंह



No comments:

Post a Comment