Sunday 3 February 2019

कुछ और भी सांसें लेने पर...

29 Jan 2019

बेटे हैं निराले तो निराली बेटियां..
पानीपत सेक्टर-25 में अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन

कुछ और भी सांसें लेने पर, मजबूर सा मैं हो जाता हूं, जब इतने बड़े जंगल में किसी इंसान की खुशबू आती है। कतील शिफाई साहब की इन पंक्तियों के साथ अखिल भारतीय मुशायरे का आगाज हुआ। दरअसल, पानीपत सेक्टर-25 स्थित पाइट संस्कृति स्कूल में हरियाणा उर्दू अकादमी और जिला प्रशासन द्वारा गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन किया गया था। मुशायरे में नामी-गिरामी शायरों ने शिरकत की।
अंग्रेजी दौर में उर्दू के शायरों को संजोकर उन्हें मंच प्रदान करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार एवं हरियाणा उर्दू अकादमी के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मुशायरे में उपस्थित सभी शायरों ने भी डॉ. त्रिखा के इन कार्यों की सराहना की। शायरों ने कहा कि डॉ. त्रिखा के नेतृत्व में हमें अपनापन सा महसूस होता है। साथ ही मुशायरे में इस बात का जिक्र भी हुआ कि हमारी सभ्यता और जड़ें इन्हीं संस्कृति से होकर गुजरती हैं, जिन्हें हमें ऐसे कार्यक्रमों से सींचकर रखना है।   

दर्शकों की मौजूदगी में जाने-माने शायर सिराज पैकर ने हाजिर करते हुए कहा कि मैं शिकार हूं कब से, जौंअदाई का, लम्हा-लम्हा डसता है आपकी जुदाई का। तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच उन्होंने पेश किया कि हर एक मछली सुनहरी दिखाई देती है, ये किसने पांव को पानी में डाल रखा है। इस शेर पर लोगों ने इतनी तालियां बजाईं कि शायर साहब को भी कहना पड़ा कि मेरा शेर आप तक पहुंच गया। मेहनत कबूल हो गई।
मुशायरे में आए तैश पोठवारी ने कहा कि मेरा कत्ल न कर पाए तो मेरे मुरीद हो गए, देखो अब तो दुश्मन भी मेरे करीब हो गए। मैं काफिर न बनूं तो क्या करूं, मेरा खुदा तो खुद बुत बनके बैठा है।
पोठवारी ने आगे पेश करते हुए कहा कि मेरे आने पर उसका महफिल से उठना लाजिमी था, मेरे आने पर उसका नजर बचाके जाना लाजिमी था, वो जो तौल रहा था महफिल में हर किसी की हैसियत, मेरे सामने दो टके का आदमी था। 
पीना है तो पहले सलीका सीख, शराब को यूं बदनाम न कर, इश्क और रंज चीज है पर्दे की, ये तमाशा सरेआम न कर। इन पंक्तियों को महफिल में पेश कर उन्होंने महफिल लूट ली।
अपनी हास्य कविताओं और हाजिरजवाबी के लिए मशहूर योगेंद्र मुदगिल ने महफिल में आए लोगों को लय में तालियां बजाने के लिए मजबूर कर दिया। चूंकि मुशायरे का मजमून बेटियां थी। लिहाजा मुदगिल साहब ने भी बेटियां पर अपनी कविता सुना मुशायरे के मजमून को सटीक ठहराया और लोगों को मंत्रमुगध कर दिया। उन्होंने सुनाया-
मासरी के प्यार की हैंडाली बेटियां,
पावन जैसे पूजा की हो थाली बेटियां
बेटे हैं निराले तो निराली बेटियां
दुर्गा कहीं तो लक्ष्मी बेटियां
मंगल के गीत और बधाई गाओ जी
दादी और बुआ संग नाचो गाओ जी
बेटी के जनम पर थालियां बजाओं जी
बेटियां बचाओ बेटियां पढ़ाओ जी।

वहीं, सोनिया नागपाल ने देशभक्ति से ओतप्रोत कविता सुनाई। उन्होंने सुनाया कि:
सरहदों पर जवानों की कतारें...
कब उसूल बदलोगे...
सपना सही सलामत दे
गिले लाख हो मगर...
कुछ खोया करे...

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