Monday 22 January 2018

डीडीयू में सिर्फ साइट पर है बर्न वार्ड की सुविधा

आरटीआई में बताया सिर्फ माइनर बर्न का होता है इलाज

बाहरी व पश्चिमी दिल्ली की लाखों की आबादी पर नहीं है एक भी बर्न वार्ड

सफदरजंग व एलएनजेपी अस्पतालों में कर दिया जाता है रैफर


दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार डीडीयू अस्पताल में सुविधाओं का भारी टोटा है। अस्पताल में आगजनी की घटनाओं के शिकार मरीजों के इलाज के लिए बर्न वार्ड की सुविधा भी नहीं है। हैरानी की बात यह है कि अस्पताल की वेबसाइट पर फैसिलिटी चार्ट के अनुसार यहां पर 6 बेडों का वर्न वार्ड उपलब्ध है। जबकि आरटीआई में मिले जवाब के अनुसार इस अस्पताल में जले हुए मरीजों का इलाज ही उपलब्ध नहीं है। अस्पताल में बर्न वार्ड न होने के कारण मरीजों को लंबी दूरी तय करसफदरजंग या लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में रैफर कर दिया जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बाहरी व पश्चिमी दिल्ली में किसी भी सरकारी अस्पताल में बर्न वार्ड या जले हुए मरीजों के उपचार की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
नाम न छापने की शर्त पर डीडीयू अस्पताल के एक सिनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में रोजाना लगभग 12-15 जले हुए मरीज आते हैं। इनमें से बेहद कम या नाम मात्र केजले मरीजों का इलाज किया जाता है। बाकी मरीजों को फस्र्ट-एड के बाद रैफर कर दिया जाता है। अस्पताल सूत्रों ने यह भी बताया कि साइट पर 6 बेड बर्न एंड प्लास्टिक के लिए दर्शाया तो गया है लेकिन यहां पर बर्न का इलाज का नहीं बल्कि हल्के रिकंस्ट्रक्टिव प्लास्टिक सर्जरी की जाती है।  इस तरह की सर्जरी में इन 6 बेडों का इस्तामाल किया जाता है।

लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एंबुलेंस की भी है कमी
आरटीआई में मिले जवाब के अनुसार साफ तौर पर स्पष्ट किया गया है कि डीडीयू अस्पताल में सिर्फ माइनर बर्न (कम जले) वाले मरीजों के उपचार की ही सुविधा है। यह सुविधा भी केवल आउट पेसेंट वेसिस पर ही उपलब्ध है। एक्सपर्ट डॉक्टरों की मानें तो 50-60 प्रतिशत आग मे झूलसे मरीज को तुरंत उपचार की जरूरत पड़ती है लेकिन वार्ड न होने के कारण दूसरे अस्पताल पहुंचने से पहले हीमरीज एंबुलेंस में ही तड़प-तड़प कर दम तोड़ जाता है। अस्पताल में फैली अव्यवस्था का आलम यह है कि सिरियस मरीजों को दूसरे अस्पताल पहुंचाने के लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एंबुलेंस भी उपलब्ध नहीं है। नतीजतन मरीजों को महंगे दामों पर प्राइवेट एंबुलेंस का सहारा लेना पड़ता है।

अस्पताल प्रशासन ने माना इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है उपलब्ध
बता दें कि आग लगने, सिलेंडर ब्लास्ट, फैक्ट्री में आग लगने की घटना के समय पुलिस प्रशासन के भी हाथ पांव फूल जाते हैं कि मरीज को किस अस्पताल में उपचार के लिए पहुंचाया जाए। आरटीआई से मिले जवाब को अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर ए. के. मेहता ने भी सही माना। उन्होंने कहा कि अस्पताल में बर्न डिपार्टमेंट के लिए अलग से न कोई वार्ड है और न ही इंफ्रास्ट्रक्चर ही उपलब्ध है। हालांकि अस्पताल में ऐसे मरीजों का प्राथमिक उपचार जरूर किया जाता है।

रैफर में होते हैं 3 से 4 घंटे बर्बाद
जले हुए मरीजों को सफदरजंग व एलएनजेपी जैसे अस्पतालों में रैफर किया जाता है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में 3 से चार घंटे का समय बर्बाद हो जाता है। जिससे मरीज की स्थिति और ज्यादा बिगड़ जाती है। एक्सपर्ट डॉक्टरों के अनुसार 50 फीसदी से ज्यादा जले मरीजों को बहुत ज्यादा दिक्कत होती है।

-साभार पंजाब केसरी

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