Monday 29 January 2018

बीटिंग रिट्रीट तब और अब


हर साल दिल्ली पुलिस, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ समेत दूसरे पैरा मिलिट्री फोर्सेज के बैंड भी अपनी प्रस्तुति देते हैं। और लोगों को देशभक्ति के भावों से सराबोर कर देते हैं। बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम पहली बार साल 1952 में आयोजित किया गया था। इस दौरान दो चरणों में कार्यक्रम कायोजन किया गया था। जानकारी के मुताबिक एक समारोह रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लालकिले के मैदान में हुआ था। इसकी खासियत यह थी कि  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद सेना के बैंड ने उनकी पसंद को ही चुना। सेना के बैंड ने महात्मा गांधी के मनपसंद गीत अबाइड विद मी की धुन बजाई थी। और यह धुन अब तक हर साल बजाई जाती है। जबकि साल 1953 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में लोक नृत्य और आतिशबाजी को शामिल किया गया था। जानकार बताते हैं कि उस साल रामलीला मैदान आतिशबाजी का गवाह बना था। साल 1953 में ही नॉर्थ ईस्ट के त्रिपुरा, असम और तत्कालीन नेफा (अरुणाचल प्रदेश) के आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने भी परेड में हिस्सा लिया था।  गणतंत्र दिवस परेड और बीटींग रिट्रीट समारोह देखने के लिए अब टिकट लेने की परंपरा है। इस परंपरा की शुरूआत साल 1962 में शुरू हुई थी। 1962 से ही गणतंत्र दिवस परेड की लंबाई को भी बढ़ाकर छह मील कर दिया गया था। लेकिन 1962 की भारत-चीन लड़ाई के कारण 1963 के परेड का आकार छोटा कर दिया गया था। बता दें कि बीटिंग रिट्रीट का मतलब होता है कि इस कार्यक्रम के साथ ही सेना अपने अपने बंकरों को लौट जाएगी।




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