राजधानी दिल्ली के स्कूलों में इंफ्रास्ट्र्क्टर तक उपलब्ध नहीं
जानकारों ने उठाए सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने अच्छे दिन आने वाले हैं जैसे नारों के साथ देश में नई उम्मीदों की लॉन्चिंग की थी। अब मोदी सरकार के अंतिम फुल बजट में इन्हीं उम्मीदों की होम डिलीवरी करने की कोशिश की गई है। सरकार को फोकस किसान और शिक्षा का क्षेत्र रहा। इसी कड़ी में सरकार ने बजट में यह ऐलान किया है कि अब शिक्षा को भी पूरी तरह से डिजिटल मोड में बदला जाएगा। ताकि बच्चे स्कूली स्तर पर ही डिजिटली हाइटेक बन सकें।
लेकिन जमीनी हकीकत इन वादों-योजनाओं से बिल्कुल परे हैं। हकीकत यह है कि स्कूलों को मॉडल स्कूलों में बदलने की योजना ही अभी तक परवान नहीं चढ़ सकी है। देश की राजधानी दिल्ली में ही ऐसे स्कूलों की भरमार हैं जहां पर इंफ्रास्ट्र्क्टर तक उपलब्ध नहीं हैं। डिजिटली क्वालीफाइड बनाने के लिए स्कूलों में बेसिक कंप्यूटरों की जरूरत होगी। लेकिन ऐसे गिनती के ही स्कूल हैं जहां पर कंप्यूटर उपलब्ध हों। इन स्कूलों में कंप्यूटर के टीचरों की भी भारी कमी है। निगम की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 17 फीसदी शिक्षा पर खर्च किया जाता है। हर साल बजट में इस मद के लिए राशि बढ़ाई जाती है लेकिन हालात नहीं बदलते। हालांकि इस विषय पर विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूल-कॉलेजों में डिजिटल पढ़ाई एक अच्छी पहल है। लेकिन पहले बुनियादी सुविधाओं को दुरूस्त करने की दिशा में काम करना चाहिए था।
ब्लैक बोर्ड की जगह डिजिटल बोर्ड
बता दें कि बजट भाषण में वित्तमंत्री अरूण जेटली ने बजट में यह भी ऐलान कि स्कूल-कॉलेजों में बच्चों को हाईटेक तरीके से पढ़ाया जाएगा। इसके लिए स्कूल-कॉलेज में अब ब्लैक बोर्ड की जगह डिजिटिल बोर्ड पर पढाई कराई जाएगी। शिक्षा में इंफ्रास्ट्रक्चर और सिस्टम को साल 2022 तक बेहतर करने का लक्ष्य है।
और बढ़ाई जानी चाहिए थी पीएचडी की संख्या
बजट में हायर एजूकेशन के क्षेत्र में भी कई योजनाओं का ऐलान किया गया है। बीटेक सब्जेक्ट के छात्रों के लिए कहा गया कि प्रधानमंत्री रिसर्च फेलो योजना लागू की जाएगी। 1000 स्टूडेंट आईआईटी से पीएचडी कर सकेंगे। इस पर कॉलेज जाना वालों छात्रों का कहना है कि पीएचडी करने के लिए मास कम्यूनिकेशन एंड जर्नलिज्म समेत दूसरे सब्जेक्टों के लिए संख्या बढ़ाई जानी चाहिए थी।
-राजेश रंजन सिंह
साभार : पंजाब केसरी
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