मंजुला दास, प्रिंसिपल, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी
युवा मन से होता है, तन से नहीं। यदि आप जीवंत हैं और जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं तो आप युवा हैं। सही दिशा में प्रयास बेहद जरूरी, नहीं तो पूरी उम्र लगा दीजिए सफलता नहीं मिलेगी। यह कहना है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के सत्यवती कॉलेज की प्रिंसिपल मंजुला दास का। शिक्षण पृष्ठभूंिम वाले परिवार से संबंधित दास भी पिछले 41 सालों शिक्षण कार्य कर रही हैं। दास का मंत्र है कि जोश, जज्बा और जुनून इंसान के भीतर हो तो वह कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकता है।
मंजुला दास, प्रिंसिपल |
दिल्ली की रहने वाली मंजुला दास का जन्म 1955 में हुआ था। स्कूली शिक्षा दिल्ली के नामी स्कूल लेडी इरविन स्कूल से की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के आईपी कॉलेज से ही बीए (ऑनर्स) हिंदी में ग्रेजुएशन व एमए (हिंदी) की पढ़ाई पूरी की। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद डी. लिट के लिए रांची यूनिवर्सिटी का रूख किया। हायर एजुकेशन के साथ ही दिल्ली यूनिवर्सिटी से फ्रेंच भाषा सीखने के लिए सर्टिफिकेट हासिल किया। बीए आनर्स के तीनों साल की टॉपर रहीं और एमए में दिल्ली यूनिवर्सिटी की टॉपर रहने के कारण गोल्ड मेडलिस्ट मिला। दास ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कमला नेहरु कॉलेज से अपने करियर की शुरूआत की और साल 1977 से ही सत्यवती कॉलेज में पढ़ाने से लेकर प्रिंसिपल तक का सफर तय किया।
15 साल की उम्र में शुरू किया लिखना
मुझे बचपन से ही लिखने का शौक था। लिहाजा 15 साल की उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था। अब तक 45 किताबें लिख चुकी हूं। जिनमें उपन्यास, नाटक, कहानी, कविताएं जैसी विधाएं शामिल हैं। सडक़, पुल और वे के लिए हिंदी अकादमी ने पुरस्कृत किया था। मुझे इंतजार था, अभी तो और जीना है प्रमुख कहानियां हैं।
बहुउद्देशीय होना जरूरी
आज के समय में जीवन के लिए एक ही लक्ष्य बनाना सही नहीं है। हमें बहुउद्देशीय होना चाहिए। इसके लिए एक-एक सीढ़ी चढक़र आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन की भागदौड़ के बीच हमें अपने सकारात्मक शौक भी पूरा करना चाहिए। उन्होंने भी पढ़ाई के साथ-साथ अपने शौक को पूरा करने के लिए प्रयास किए और सफलता भी हासिल की। उन्होंने पेंटिंग, सिंगिंग, डांसिंग, न्यूमरोलॉजी में भी दक्षता पाई। अभी तक सौ से अधिक पेंटिंग बना चुकी हैं। कॉलेज में भी कई बार कार्यक्रमों के दौरान गुनगुनाकर सिंगिंग का शौक पूरा किया। इतना ही नहीं, न्यूमरोलॉजी का शौक तो इस कदर था कि इसे सीखने के दौरान इस क्षेत्र में गोल्ड मेडल हासिल कर लिया।
संघर्षशील ही करते हैं सफलता का सम्मान
दास मानती हैं कि आज का युवा शॉर्टकट की तरफ ज्यादा भागता है। लेकिन इस शॉर्टकट में उलझाव ज्यादा है। वह बताती हैं कि जितनी मेहनत उन्होंने आट्र्स विषय की पढ़ाई को दौरान की, उतनी मेहनत साइंस विषय के छात्र भी शायद नहीं करते। उनका कहना है कि यदि मैंने मेहनत नहीं की होती तो आज इम मुकाम पर शायद नहीं होती। संघर्ष करके जब एक-एक सीढ़ी चढक़रमुकाम हासिल करते हैं तो हमें पता होता है कि हम किस रास्ते से होकर यहां तक पहुंचे हैं। फिर हम उस सफलता का सम्मान भी करते हैं। एक संघर्षशील व्यक्ति ही सफलता का सम्मान कर सकता है। अचानक से मिलने वाली सफलता को लेकर हमारा स्वभाव भी कुछ अलग होता है। हम उसकी इज्जत नहीं कर पाते।
जापानी छात्रों को दी हिंदी की तालीम
टीचिंग के दौरान दास ने जापानी छात्रों को हिंदी भाषा की तालीम दी। मंजुला दास जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज (डिपार्टमेंट ऑफ हिंदी) में 1982-84 में गईं। यहां पर उन्होंने दो सालों तक विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर काम किया।
साभार:- पंजाब केसरी
--राजेश रंजन सिंह
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