Tuesday, 13 February 2018

लक्ष्य हासिल करने के बाद बढ़ते रहें आगे


डॉ. साधना शर्मा, प्रिंसिपल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी



जीवन में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो लाख परेशानियां भी आपको अपने मकसद से दूर नहीं कर सकती। अपने काम पर युवाओं को फोकस करना चाहिए क्योंकि युवाओं की विचारधारा में ज्यादातर बिखराव नजर आता है। उन्हें कोई लक्ष्य नहीं दिखता। युवाओं को सबसे पहले अपना लक्ष्य निर्धारित कर उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए। निरंतर प्रयत्न करने से ही लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे। लक्ष्य प्राप्ति के बाद भी नहीं रूकना चाहिए बल्कि विकास के लिए उस दिशा में प्रयास शुरू करना चाहिए। यह कहना है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज (एसपीएम) की प्रिंसिपल डॉ. साधना शर्मा का। डॉ. शर्मा का यह भी कहना है कि
होके मायूस न यूं शाम से ढ़लते रहिए.. जिंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए। 
एक ही पैर पर ठहरोगे तो थक जाओगे..धीरे धीरे ही सही मगर चलते तो रहिए।  

डॉ. साधना शर्मा का जन्म अक्टूबर 1960 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हुआ था। स्कूली शिक्षा उपरांत दिल्ली यूनिवर्सिटी एम.ए, एम.फिल तथा पी.एच.डी. की पढ़ाई पूरी की। हायर एजुकेशन के साथ ही थियेटर, पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महारत हासिल की। डॉ. शर्मा दिल्ली यूनिवर्सिटी के जाकिर हुसैन और स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में भी छात्रों को पढा चुकी हैं और साल 1990 से ही एसपीएम कॉलेज में पढ़ाने से लेकर प्रिंसिपल तक का सफर तय किया है।

सिविल सर्विसेज का इंटरव्यू छोड़ शिक्षक बनीं 
डॉ. शर्मा ने बताया कि दिल्ली में उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी की। देश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित परीक्षा में प्री और मेंस भी क्लेयर कर लिया था। लेकिन इंटरव्यू देने नहीं गईं और शिक्षा क्षेत्र से जुड़ गईं। मां चाहती थी कि शिक्षा के क्षेत्र में जाए। अब तक कई किताबें लिख चुकी हैं। जिनमें पत्रकारिता से लेकर नाटक, कहानी, रिसर्च विधाएं शामिल हैं। जयशंकर प्रसाद के नाटकों का शैली वैज्ञानिक अध्ययन, आषाढ़ का एक दिन: भाषिक संरचना, सामाजिक समरसता की चुनौतियां  (संपादित), संचार का स्वरूप प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं। इसके अलावा डॉ. शर्मा ने समय सरोकार पत्रिका का संपादन भी किया है।

हिंदी का बढ़ा है चलन
व्यवहार में हिंदी भाषा ही चल रही है। पढ़ाई के संबंध में छात्र औपचारिक पाठ्यक्रम चाहते हैं कि अंग्रेजी में पढ़े। यही वजह है कि दूरदराज के इलाकों और गांवों में लोग चाहते हैं कि उनका बच्चा इंग्लिस मीडियम स्कूल में पढ़े। मेरा मानना है कि युवा भी हिंदी भाषा का प्रयोग कर रहा है। 80 के दशक में यूनिवर्सिटी में भी बोलचाल में अंग्रेजी का बहुत ज्यादा प्रयोग होता था लेकिन अब बहुत बदलाव आया है।

सदा सकारात्मक रहें
जिंदगी को लेकर हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए। ईश्वर या किसी व्यक्ति से कोई शिकायत नहीं करता। जिंदगी का मतलब लोगों को खुश रखना होना चाहिए। खुद के लिए जीने का कोई मतलब नहीं। साथ ही सफलता का मतलब पैसा नहीं होना चाहिए। जिंदगी में कभी भी अपने मन में निराशाओं को घर न करने दें।

सिखा चुकी हैं पत्रकारिता के गुर
दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंदी ऑनर्स समेत कई विषयों में ऑपश्नल पेपर के तौर पर जर्नलिज्म सब्जेक्ट को शामिल किया गया था। उसी दौरान छात्रों को कॉलेज में पत्रकारिता के गुर सिखाए। डॉ. शर्मा ने भी पत्रकारिता पढ़ाने से पूर्व इग्नू से डिप्लोमा हासिल किया। आज उनके पढ़ाए छात्र बेहतर मुकाम हासिल कर चुके हैं।

हिम्मत और सम्मान के साथ काम करना चाहिए
डॉ. साधना शर्मा का कहना है कि जीवन में खेलकूद, घूमना-फिरना सब जरूरी है लेकिन सबसे अहम होता है करियर बनाना। अपने कॉलेज की छात्राओं को कहती हूं कि कोई भी काम करो लेकिन वह काम ऐसा होना चाहिए कि आपको स्वयं भी अच्छा महसूस हो सके। हर काम हिम्मत के साथ करो, सम्मान के साथ करो और इस तरीके का काम करो कि उसके बारे में बता सको कि आप क्या काम कर रहे हो।


---राजेश रंजन सिंह

साभार: पंजाब केसरी 

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